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देवता: विश्वेदेवा: ऋषि: ऋजिश्वाः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

विश्वे॑ देवास॒ आ ग॑त शृणु॒ता म॑ इ॒मं हव॑म्। एदं ब॒र्हिर्नि षी॑दत ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve devāsa ā gata śṛṇutā ma imaṁ havam | edam barhir ni ṣīdata ||

पद पाठ

विश्वे॑। दे॒वा॒सः॒। आ। ग॒त॒। शृ॒णु॒त। मे॒। इ॒मम्। हव॑म्। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। नि। सी॒द॒त॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:52» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर पढ़नेवालों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विश्वे, देवासः) सब विद्वानो ! तुम हमारे अति समीप (आ, गत) आओ तथा (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (नि, सीदत) निरन्तर स्थिर होओ तथा (मे) मुझ विद्यार्थी के (इमम्) इस (हवम्) सुने पढ़े विषय को (आ, शृणुता) अच्छे प्रकार सुनो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में नेदिष्ठम् यह पद पिछले मन्त्र से अनुवृत्ति में आता है। विद्यार्थियों को चाहिये कि परीक्षा करनेवाले विद्वानों की प्रार्थना कर परीक्षा में सुनाने योग्य समस्त सुना और पढ़ा विषय उनके समीप में निवेदन करें तथा वे परीक्षक भी अच्छे प्रकार परीक्षा कर गुण और दोषों का उपदेश दें, ऐसा करने पर पढ़ना निर्दोष हो ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्येतृभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विश्वे देवासो ! यूयमस्माकं नेदिष्ठमा गत, इदं बर्हिर्निषीदत म इमं हवमा शृणुता ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) आगच्छत (शृणुता) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (मे) मम विद्यार्थिनः (इमम्) वर्त्तमाने पठितम् (हवम्) श्रुताधीतविषयम् (आ) (इदम्) वर्त्तमानम् (बर्हिः) उत्तमासनम् (नि) नितराम् (सीदत) आसीना भवत ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र नेदिष्ठमितिपदं पूर्वमन्त्रादनुवर्त्तते। विद्यार्थिभिः परीक्षकान् विदुषः प्रार्थ्य परीक्षायां नियोज्यः सर्वः श्रुताऽधीतविषयस्तत्समीपे निवेदनीयस्ते च सम्यक् परीक्ष्य गुणदोषानुपदिशेयुरेवं कृते सत्यध्ययनं निर्दोषं स्यात् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात ‘नेदिष्ठम’ हे पद मागच्या मंत्रातून अनुवृत्तीने आलेले आहे. विद्यार्थ्यांनी विद्वान परीक्षकांची प्रार्थना करून परीक्षेमध्ये जे ऐकवावयाचे ते ऐकवून त्यांच्यासमोर शिकलेल्या विषयाचे प्रकटन करावे व परीक्षकानेही चांगल्या प्रकारे परीक्षा करून गुण-दोषांचे विवेचन करावे. यामुळे शिकणे निर्दोष होते. ॥ ७ ॥